Best Collection of Hindi Sad Shayari | Urdu Sad Poetry In Hindi | दर्द भरी शायरी हिंदी में 2022
If you are also very sad in the memory of someone or the sorrow of separation, then with the help of Sad Shayari Hindi Sad Shayari in Hindi, you can also convey your heart to others with the help of words. Sometimes we become very sad in the memory of someone because of the sorrow of separation. At such a time, we are not even able to express our heart's feelings and pain in front of anyone. When we do not share our sorrow with anyone, then our suffering increases and we have to face more trouble. There comes a moment in the life of all of us when we are going through a very sad time.
Sometimes the sorrow of being separated from someone, sometimes the sorrow of losing something, sometimes the sorrow of remembering someone, we are always facing some misery. In such a situation, this Sad Shayari will help you. Today we have brought some such Sad Shayari in Hindi for you, with the help of which you can convey your sorrow to others.
आदतन तुमने कर दीए वादे,
आदतन हमने एतबार किया…
तेरी राहों में बारहाँ रुक कर,
हमने अपना ही इंतज़ार किया…
अब ना मांगेंगे ज़िन्दगी या रब,
यह गुनाह हमने जो एक बार किय ।
~ गुलजार
तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते
ज़रा सी बात पे जीना हराम क्या करते
न नींद आँखों में बाक़ी न इंतिज़ार रहा
ये हाल था तो कोई नेक काम क्या करते
मिज़ाज में था तकब्बुर तो हरकतों में ग़ुरूर
फिर ऐसे शख़्स को हम भी सलाम क्या करते
~ रईस सिद्दीक़ी
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
- अख़्तर सईद ख़ान
न नींद आँखों में बाक़ी न इंतिज़ार रहा
ये हाल था तो कोई नेक काम क्या करते
~रईस सिद्दीक़ी
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
- गुलज़ार
आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया
- अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी
वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं
~नज़र हैदराबादी
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
~मोमिन ख़ाँ मोमिन
अब भी गुजरे हुए लम्हात की याद आती है
ज़ख्म ए अहसास को कुछ और दुखा जाती है
~ मोहसीन जैदी
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
गहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम
~रईस अमरोहवी
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा
सुन लीजिए कि है अभी आग़ाज़-ए-आशिक़ी
फिर हम से अपना हाल सुनाया न जाएगा
हम आह तक भी ला न सकेंगे ज़बान पर
वो रूठ जाएँगे तो मनाया न जाएगा
~हमीद जालंधरी
शाम होने को है घर जाते हैं
अब बुलन्दी से उतर जाते हैं
ज़िंदगी सामने मत आया कर
हम तुझे देख के डर जाते हैं
ख़्वाब क्या देखें थके हारे लोग
ऐसे सोते हैं कि मर जाते हैं
- शकील आज़मी
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं
इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं
ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं
~ ख़ुमार बाराबंकवी
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा
~ बशीर बद्र
हिज्र समुंदर नहीं वस्ल किनारा नहीं
कौन है किस मोड़ पर कोई इशारा नहीं
उस से बिछड़ के अगर हम हैं तमाशा तो क्या
उस के सिवा तो कोई महव-ए-नज़ारा नहीं
छोड़ चले हैं यहाँ इबरत-ए-आइंदगाँ
हम भी तो उस के नहीं वो जो हमारा नहीं
~ साबिर ज़फ़र
उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
जाने क्या लफ़्ज़ थे जो हम से न तहरीर हुए
~साबिर ज़फ़र
धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा
मैं और मेरे ज़ख़्मी एहसासात अकेला कमरा
- ऐतबार साजिद
उड़ने की आरज़ू में हवा से लिपट गया
पत्ता वो अपनी शाख़ के रिश्तों से कट गया
ख़ुद में रहा तो एक समुंदर था ये वजूद
ख़ुद से अलग हुआ तो जज़ीरों में बट गया
अंधे कुएँ में बंद घुटन चीख़ती रही
छू कर मुंडेर झोंका हवा का पलट गया
~ मुसारत मेहदी
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मैं तुझ को सोचने बैठी तो ये ख़याल आया
कि आफ़्ताब-ए-मोहब्बत को क्यों ज़वाल आया
कई थे अहल-ए-तलब लाख ख़ूबियों के मगर
हमारी ज़ीस्त में इक शख़्स बे-मिसाल आया
~ शाहिदा लतीफ़
हर-चंद ग़म-ओ-दर्द की क़ीमत भी बहुत थी
लेना ही पड़ा दिल को ज़रूरत भी बहुत थी
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी
मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
यूँ ही नहीं मशहूर-ए-ज़माना मिरा क़ातिल
उस शख़्स को इस फ़न में महारत भी बहुत थी
~ कलीम आजिज़
ज़िंदगी सामने मत आया कर
हम तुझे देख के डर जाते हैं
ख़्वाब क्या देखें थके हारे लोग
ऐसे सोते हैं कि मर जाते हैं
- शकील आज़मी
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये,
धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये.
करने गये थे उससे तग़ाफ़ुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गये.
इस रंग से उठाई कल उसने असद की लाश,
दुश्मन भी जिसको देखके ग़मनाक हो गये.
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा
अकेले-पन का ये एहसास मुझ को मार डालेगा
किसी को क्या पड़ी है मेरी ख़ातिर ख़ुद को ज़हमत दे
परेशाँ हैं सभी कैसे कोई मुझ को सँभालेगा
रिहा कर दे क़फ़स की क़ैद से घायल परिंदे को
किसी के दर्द को इस दिल में कितने साल पालेगा
~ ऐतबार साजिद
कैसा और कब से तअ'ल्लुक़ था हमारा क्या कहूँ
कुछ नहीं कहने को अब उस के मुकर जाने के बा'द
- जावेद शाहीन
ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
- उम्मीद फ़ाज़ली
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
अपना दिल भी टटोल कर देखो
फासला बेवजह नही होता
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
गुफ़्तगू उनसे रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता.
~ बशीर बद्र
होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
~ बशीर बद्र
कैसा तारा टूटा मुझ में
झाँक रही है दुनिया मुझ में
कोई पुराना शहर है जिस का
खुलता है दरवाज़ा मुझ में
दिया जला के छोड़ गया है
कोई अपना साया मुझ में
कोई मुझ को ढूँढने वाला
भूल गया है रस्ता मुझ में
बरस रही थी बारिश बाहर
और वो भीग रहा था मुझ में
~ नज़ीर क़ैसर
अमीर-ए-शहर के होंटों पे पड़ गए ताले
ग़रीब-ए-शहर का चुभता सवाल ऐसा था
ब-वक़्त-ए-शाम समुंदर में गिर गया सूरज
तमाम दिन की थकन से निढाल ऐसा था
ख़ुद अपने आप से भी मैं रहा हूँ बेगाना
हिसार-ए-दिल में किसी का ख़याल ऐसा था
~ अज़हर नैयर
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं
छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं
नर्म अल्फ़ाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं
~ जावेद अख़्तर
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